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पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष स्थानों पर दीप जलाने की परंपरा

पितृ पक्ष भारतीय धर्म और संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह ऐसा समय होता है जब हम अपने पूर्वजों, पितरों को याद करते हैं और उनके लिए तर्पण, श्राद्ध आदि कर्मकांड करते हैं। पितृ पक्ष का उद्देश्य पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना है। माना जाता है कि इस अवधि में अगर सही विधि से पितरों का सम्मान किया जाए और उनकी नाराजगी दूर की जाए, तो परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। इस दौरान विशेष पूजा, तर्पण और दान-पुण्य कार्य किए जाते हैं ताकि पितरों की आत्मा को मोक्ष और शांति मिले। पितरों की प्रसन्नता के लिए दीपक जलाना एक प्राचीन और प्रभावशाली उपाय माना जाता है। यह दीपक न केवल अंधकार दूर करता है बल्कि पितरों की आत्मा को भी प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है।

नदी के किनारे
नदियों के तट पर दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। पवित्र नदियां पितरों के लिए मोक्षदायक होती हैं। यहां दीपक जलाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद मिलता है। संभव हो तो गंगा या यमुना जैसी पवित्र नदियों के किनारे तर्पण और दीपक जलाएं।

मंदिरों के प्रांगण
जहां भगवान शिव, विष्णु या अन्य प्रमुख देवताओं के मंदिर हों, वहां दीपक जलाने से पितरों की शांति होती है। मंदिर का वातावरण शुद्ध होता है और यह पितरों को प्रसन्न करने का उत्तम स्थान माना जाता है।

पेड़-पौधों के नीचे
वृक्षों के नीचे दीपक जलाना भी शुभ होता है। विशेष रूप से पीपल, बरगद और अशोक के पेड़ पितृओं के लिए पूजनीय माने जाते हैं। इन स्थानों पर दीपक जलाने से पितरों की कृपा मिलती है।

अपने घर के मंदिर या पूजा स्थान पर
घर के मंदिर या पूजा कक्ष में भी दीपक जलाना जरूरी होता है। यहां नियमित रूप से दीपक जलाकर पितरों का स्मरण करें और उनकी सेवा करें। इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।

पितृ तर्पण स्थल
कुछ स्थान ऐसे होते हैं जो पितृ तर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं, जैसे प्रयागराज, हरिद्वार, काशी। यदि संभव हो तो ऐसे तीर्थ स्थलों पर जाकर दीपक जलाना अत्यंत लाभकारी रहता है।

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