विश्व एक परिवार है, वसुधैव कुटुंबकम् भारत की संस्कृति है : परमार

भारतीय प्रतिभाएं, भारत के विकास में योगदान दें : केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान

मप्र से देश भर में यह संदेश जाएगा कि भाषा जोड़ने का काम करती है : उच्च शिक्षा मंत्री परमार

विश्व एक परिवार है, वसुधैव कुटुंबकम् भारत की संस्कृति है : परमार
भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) का द्वादश दीक्षांत समारोह

भोपाल 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने भोपाल स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) में सोमवार को आयोजित 'द्वादश (12वें) दीक्षांत समारोह' में उपाधि प्राप्त करने वाले मेधावी विद्यार्थियों को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं।

केंद्रीय कृषि मंत्री चौहान ने भारत की उज्ज्वलतम प्रतिभाओं को देश में ही बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। चौहान ने उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से भावनात्मक आह्वान करते हुए कहा कि वे विदेशों में अवसर तलाशने के बजाय, भारत के विकास और नवाचार प्रणाली में सक्रिय योगदान दें। चौहान ने इस बात को रेखांकित किया कि सिलिकॉन वैली जैसे वैश्विक तकनीकी केंद्रों में बड़ी संख्या में भारतीय प्रतिभाएं काम कर रही हैं। चौहान ने स्नातकों को प्रेरित किया कि वे अपनी योग्यता और कौशल का उपयोग भारत के हित में करें। उन्होंने 'ब्रेन ड्रेन' की प्रवृत्ति को उलटने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि युवा देश में ही सफल करियर और उद्यम खड़े करें, जिससे विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्यमिता के क्षेत्र में भारत की नींव मजबूत हो। चौहान ने विद्यार्थियों को जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर, समाज और देश के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित किया। चौहान ने स्थानीय उत्पादों और व्यवसायों के समर्थन की आवश्यकता पर भी बल दिया। चौहान ने कहा कि जब हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाते और बढ़ावा देते हैं, तब न केवल देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होते हैं। यह प्रक्रिया ग्रामीण और शहरी दोनों समुदायों को सशक्त बनाती है और समावेशी विकास को बढ़ावा देती है। चौहान ने भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का उल्लेख किया और विश्वास जताया कि आने वाले समय में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनेगा।

उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री इन्दर सिंह परमार ने सभी मेधावी शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को शुभकामनाएं एवं बधाई दी। परमार ने कहा कि विश्व एक बाजार नहीं, अपितु एक परिवार है। "वसुधैव कुटुंबकम्" का यही मूल भाव, भारत की संस्कृति है। यह भारतीय दृष्टिकोण विश्वमंच पर जितना प्रभावशाली एवं व्यापक होगा, वैश्विक परिधियों में लोक कल्याण का मार्ग उतना ही प्रशस्त होगा। परमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में, प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में भारतीय भाषाओं को पढ़ाया जाएगा। प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक भारतीय भाषा सिखाने की कार्य योजना तैयार की जा रही है और इसका विद्यार्थियों को उनके मूल्यांकन में वेटेज देने की भी कार्ययोजना है। प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय भाषाओं को पढ़ाने से देश भर में यह संदेश जाएगा कि भाषा जोड़ने का काम करती हैं।

उच्च शिक्षा मंत्री परमार ने कहा कि कृतज्ञता का भाव, भारत की सभ्यता एवं विरासत है। किसी के कार्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करना, कृतज्ञता भाव रूपी भारतीय दर्शन का उत्कृष्ट उदाहरण है। परमार ने कहा कि पेड़ों, जलस्रोतों सूर्य आदि प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों के पूजन एवं उपासना की पद्धति भारतीय समाज में परंपरागत रूप से विद्यमान है। यह परंपरा प्रकृति सहित समस्त ऊर्जा स्रोतों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भाव है। हम सभी कृतज्ञतावादी है, न कि रूढ़िवादी। समाज में विद्यमान परम्पराओं के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को वैश्विक मंच पर युगानुकुल परिप्रेक्ष्य में पुनः शोध एवं अनुसंधान के साथ समृद्ध करने की आवश्यकता है। हमारे पूर्वज सूर्य उपासक थे, प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों की उपयोगिता और महत्व को जानते थे। परमार ने कहा कि स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत सौर ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा के क्षेत्र में आत्म निर्भर होकर अन्य देशों की भी पूर्ति करने में समर्थ होगा। साथ ही वर्ष 2047 तक खाद्यान्न के क्षेत्र में भी आत्म निर्भर होकर अन्य देशों का भरण-पोषण करने में भी सामर्थ्यवान बनेगा। हम सभी की सहभागिता से अपने पूर्वजों के ज्ञान के आधार पर पुनः विश्वमंच पर सिरमौर राष्ट्र का पुनर्निर्माण होगा। इसके लिए हमें स्वाभिमान के साथ हर क्षेत्र में अपने परिश्रम और तप से आगे बढ़कर, विश्वमंच पर अपनी मातृभूमि का परचम लहराना होगा। अपनी गौरवशाली सभ्यता, भाषा, इतिहास और ज्ञान के आधार पर हम सभी की सहभागिता से भारत पुनः "विश्वगुरु" बनेगा।

समारोह में संस्थान के विभिन्न संकायों बीएस में 51, बीएस-एमएस में 227, एम.एससी./एम.एस. में 56 एवं पीएच.डी. पाठ्यक्रम में 89, इस प्रकार कुल 423 विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की गईं। विशिष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों में संस्थान द्वारा दिए जाने वाला राष्ट्रपति स्वर्ण पदक एवं निदेशक स्वर्ण पदक कौशिक मेधी (बीएस-एमएस) को दिया गया। समारोह में 16 छात्र- छात्राओं को प्रवीणता पदक और 6 विद्यार्थियों को सर्वश्रेष्ठ थीसिस पुरस्कार प्रदान किया गया। समारोह में संस्थान की इनोवेशन मैगजीन का विमोचन भी हुआ।

समारोह में संस्थान के शासक मंडल के अध्यक्ष प्रो. अरविंद ए नातू एवं संस्थान के निदेशक प्रो. गोवर्धन दास सहित संस्थान के विभिन्न विभागों के एचओडी, प्राध्यापकगण, विद्यार्थी एवं उनके अभिभावक उपस्थित थे।

 

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