प्रदेश के किसानों को बाजार से दोगुनी मिलेंगे दाम, राज्य बनेगा ऑयल सीड हब

ग्वालियर 
 मध्य प्रदेश में खेती और यहां का शरबती गहूं देश दुनिया में पहचान रखता है. प्रदेश में खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार नए प्रयोग भी होते रहे हैं. यही वजह है कि लगातार कृषि क्षेत्र में अग्रसर मध्य प्रदेश अब ऑयल सीड हब बनने जा रहा है. जिसके तहत प्रदेश के तीन जिलों में स्पेशल प्रोग्राम चलाया जाएगा. यहां के किसान अब तीन फसलों के बीज खरीदेंगे नहीं बल्कि उगायेंगे और ये बीज सरकार के जरिए अन्य किसानों की आपूर्ति करेंगे.

ये सभी जानते हैं कि, किसी भी फसल से उसके बीज का दाम काफी ज्यादा होता है. लेकिन आम तौर पर किसान बीज सहकारी समितियों की मदद से खरीदते हैं. गेहूं और धान को हटाकर मध्य प्रदेश में तिलहन फसलें यानी सोयाबीन, सरसों और मूंगफली की खेती भी प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में लगायी जाती है. लेकिन इन फसलों के लिए बढ़ते रकबे के हिसाब से कृषि संस्थान भी पर्याप्त बीज नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं. यही वजह है कि अब मध्य प्रदेश में एक विशेष प्रोजेक्ट लाया गया है, जो किसानों के लिए उन्नत खेती के साथ भी कमाई का नया जरिया बनेगा.

मध्य प्रदेश में तिलहन फसलों के लिए सीड हब प्रोजेक्ट
भारत सरकार ने ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय को ऑयल सीड हब प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाया है. जिसके तहत मध्य प्रदेश के तीन जिलों में प्रदेश भर के किसानों को तिलहन फसलों के बीज उपलब्ध कराने के लिए बीज तैयार कराये जाएंगे, जिसे सीड हब नाम दिया गया है. इन सीड हब में तीन प्रमुख फसलों के बीज तैयार कराये जाएंगे. पहले ऑयल सीड हब सीहोर में स्थापित किया जाएगा. जहां सोयाबीन के बीज तैयार होंगे. दूसरा मूंगफली के लिए शिवपुरी में और तीसरा हब मुरैना में सरसों के बीज के लिए है.

चंबल में किसानों के सिर चढ़ी मूंगफली
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि, ''पिछले कुछ वर्षों में मालवा के अलावा चंबल के शिवपुरी क्षेत्र में किसान मूंगफली की फसल लगाने लगे हैं. ऐसे में उन्हें मूंगफली की नई नई प्रजातियों की जरूरत है. कृषि विश्वविद्यालय ने मूंगफली की दो किस्में तैयार भी की हैं. इसके अलावा इस क्षेत्र में मूंगफली का रकबा भी लगातार बढ़ रहा है. पिछले साल के मुकाबले इस साल भी लगभग 1 लाख हेक्टेयर रकबा मूंगफली का बढ़ा है. ऐसे में मूंगफली के बीज किसानों को उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. सीड हब प्रोजेक्ट इसे नई दिशा देगा.

कैसे काम करता है सीड हब प्रोग्राम?
सीड हब प्रोग्राम के तहत विश्वविद्यालय द्वारा किसी क्षेत्र में चयनित किसानों को फसल के बीज उपलब्ध कराये जाते हैं. इसके बाद किसान इनकी बुवाई कर फसल तैयार करता है. फसल में समय पर और जरूरी पोषण के लिए अच्छी गुणवत्ता का खाद दिया जाता है, और फसल पकने पर उसे हार्वेस्ट कर लिया जाता है. यह कार्य कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में पूरा किया जाता है. यही फसल उन्नत किस्म के बीज के तौर पर तैयार होगी और फिर कृषि विश्वविद्यालय उनसे यह फसल बीज के लिए लेगा. उसे प्रोसेस करेगा और फिर अन्य किसानों को उपलब्ध कराएगा.

किसान क्यों नहीं करते आम फसल को बीज की तरह उपयोग?
कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु के मुताबिक, ''आम तौर पर तैयार फसल का उपयोग किसान बीज के तौर पर नहीं कर पाते हैं. जिसकी बड़ी वजह है फसल में अलग अलग तरह के बीजों का समावेश. असल में जब किसान खेत में फसल की बुवाई करता है तो उसके लिए कई किस्म के बीज उपयोग ले लेता है.

उदाहरण के लिए जब सरसों की बुवाई होती है तो उसमे कई बार काली सरसों के साथ कम पड़ने पर पीली सरसों या दूसरी वेराइटी के बीज बो दिए जाते हैं. जिसकी वजह से खेत में तैयार फसल में वेरिएशन आ जाता है और किसानों को उस सरसों को फसल की तरह ही बेचना पड़ता है. क्योंकि वह फसल सिर्फ तेल या सरसों के उपयोग की ही होती है. लेकिन सीड हब प्रोग्राम में किसानों को एक ही वेराइटी का बीज उपलब्ध कराया जाएगा और उससे तैयार फसल बीज के तौर पर उपयोग हो सकेगी.

खुद नहीं, किसानों से ही क्यों तैयार करायेंगे बीज?
असल में मूल रूप से फसलों के बीज तैयार करने की व्यवस्था कृषि संस्थानों पर होती है (निजी कंपनियों को छोड़कर), लेकिन यहां लगायी जाने वाली फसलें काफी सीमित क्षेत्र में ही लगायी जा सकती हैं. ऐसे में डिमांड के अनुसार, बीज व्यापक मात्रा में यहां तैयार नहीं किया जा सकता. इस स्थिति में किसान एक बेहतरीन विकल्प है, क्योंकि किसान अपने ही खेत में बीज के लिए फसल लगाएगा तो कृषि विश्वविद्यालय को अलग से जमीन की भी जरूरत नहीं होगी. साथ ही तैयार बीज से किसानों के लिए बीज की आपूर्ति भी आसानी से हो सकेगी.

इस सब में किसानों को कैसे होगा फायदा?
जब सवाल आता है कि, पूरी मेहनत किसान की बीज संस्थान लेगा तो किसानों का क्या फायदा? तो आपको बता दें कि यह किसान के लिए फायदेमंद सौदा होगा. क्योंकि, पहले तो इस प्रोग्राम के तहत कृषि वैज्ञानिक किसानों को फसल के जरिए बीज तैयार करना सिखायेंगे. जिससे भविष्य में वे खुद अपनी ही फसलों से भी बीज तैयार कर सकेंगे और उन्हें बाहर से बीज नहीं खरीदना पड़ेगा जो उनकी लागत को कम करेगा.

दूसरा बड़ा फायदा फसल के दाम में अंतर आएगा. क्योंकि अमूमन आम फसल के दाम काफी कम होते हैं लेकिन उस फसल का बीज ऊंचे दाम पर बिकता है. उदाहरण के लिए सोयाबीन फसल का रेट लगभग 3 हजार से 5 हजार रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि सोयाबीन के बीज की कीमत बाजार में 7 हजार रुपये से लेकर 35 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक उपलब्ध है. जब विश्व विद्यालय उनकी तैयार फसल खरीदेगा तो वह बीज के रेट पर खरीदेगा तो उन्हें दोगुने से तीन गुना तक ज्यादा दाम मिलेगा जो उनकी आय बढ़ाएगा. किसान चाहे तो खुद के द्वारा तैयार बीज अन्य किसानों को भी बेच सकेंगे.

प्रदेश में कहां-कहां बनाये जाएंगे सीड हब
जैसा की हमने पहले बताया कि, चंबल अंचल के शिवपुरी क्षेत्र में मूंगफली अब व्यापक स्तर पर किसान लगा रहे हैं. ऐसे में मूंगफली सीड हब शिवपुरी में लगाया जाएगा, इसके अलावा दूसरा प्रोजेक्ट सोयाबीन सीड हब का है. चूंकि मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन सबसे ज्यादा मालवा क्षेत्र में होता है, इसलिए सोयाबीन सीड हब प्रोजेक्ट सीहोर में लगाया जाएगा.

इसके लिए जवाहर लाल नहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी सोयाबीन के अच्छी किस्मों के बीज तैयार कर रहे हैं. किसान दोनों विश्वविद्यालय में से जिसके भी बीज चाहेगा वे बीज उस सीड हब प्रोग्राम में किसानों के खेतों में लगवाए जाएंगे. तीसरा सीड हब प्रोग्राम चंबल के मुरैना में शुरू कर दिया गया. यहां सरसों के बीज तैयार कराए जा रहे हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में किसान सरसों की खेती अधिक करते हैं और यहां सरसों के बीज की डिमांड काफी रहती है.

किसानों तक कैसे पहुंचेंगे ये बीज?
कृषि विश्वविद्यालय ने बीज आपूर्ति का विकल्प तो सीड हब प्रोग्राम से ढूंढ लिया लेकिन चयनित किसानों तक यह बीज कैसे पहुचेंगे और कैसे आम किसानों को उपलब्ध होंगे, यह बात भी गौर करने लायक है. तो आपको बता दें कि, सीड हब प्रोग्राम को सुगम बनाने के लिए कृषि विश्वविद्यालय एफपीओ के जरिए किसानों को इस प्रोग्राम में जोड़ेगा, साथ ही बीज तैयार होने के बाद एफपीओ के माध्यम से ही सभी किसानों को उपलब्ध कराएगा. इसमें यह भी प्रयास किया जा रहा है कि, किसानों पर बीज का बोझ ज्यादा ना आये इसके लिए सरकार द्वारा सब्सिडी उपलब्ध कराने पर भी चर्चा की जा रही है. 

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