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‘बंगाल के उच्च श्रेणी के आईपीएस वर्ग का आचरण अत्यंत निंदनीय और चिंताजनक,’ ‘नबन्ना’ के बीच प्रमुख सचिव पद से रिटायर हुए पूर्व IAS ने ऐसा क्यों लिखा?

द रिट डेस्क, रायपुर, 28 अगस्त 2024

 

पश्चिम बंगाल में गैंगरेप मामले में स्टूडेंट्स के प्रदर्शन को ‘नबन्ना अभियान’ नाम दिया गया है। आज भी छात्रों का प्रदर्शन जारी रहेगा।

इस बीच आज भारतीय जनता पार्टी ने 12 घंटे का बंगाल बंद बुलाया है। यह बंद बुधवार सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक रहेगा। इस बंद को नबन्ना मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई के विरोध में बुलाया गया है, लेकिन ममता बनर्जी का दो टूक कहना है कि बुधवार को कोई बंद नहीं रहेगा। सरकारी कर्मचारियों के ऑफिस नहीं पहुंचने पर उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। वहीं, नबन्ना प्रोटेस्ट के बीज आज जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल भी है। वहीं जारी आदेश को लेकर सियासतदानों में आरोप प्रत्यारोप के बीच छत्तीसगढ़ के सेवानिवृत प्रमुख सचिव गणेश शंकर मिश्रा ने पश्चिम बंगाल के उच्च श्रेणी के आईपीएस ने प्रश्न खड़े किए हैं, साथ ही उन्होंने उसे निंदनीय और चिंताजनक बताया है।

क्या लिखा है गणेश शंकर मिश्रा ने?
अक्सर देश और राज्य के समसामयिक मुद्दों पर बेबाक़ी से बोलने वाले पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने बंगाल के नबन्ना प्रदर्शन मामले में लिखा है-‘पश्चिम बंगाल के उच्च श्रेणी के आईपीएस समुदाय का आचरण आज जिस स्तर पर पहुँच चुका है, वह अत्यंत निंदनीय और चिंताजनक है। ऐसा लगता है कि देश का यह वर्ग, जो कभी अपने कर्तव्यनिष्ठा और निष्पक्षता के लिए जाना जाता था, अब एक सत्ताधीश की चापलूसी और स्वार्थी हितों की पूर्ति में लिप्त हो गया है। यह आचरण न केवल उनके द्वारा निभाए जाने वाले पद की गरिमा को गिराता है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुँचाता है।

देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल ने ब्यूरोक्रेसी को स्टील फ्रेम की उपाधि दी थी। देश में आज भी ऐसे अनेक ब्यूरोक्रेट्स हैं जो इस उपाधि को अपने क्रियाकलापों से सार्थक कर रहे हैं। लेकिन बंगाल के संबंधित ब्यूरोक्रेट्स मूलभूत कर्तव्यों और संवैधानिक दायित्वों को भूल सत्ता के आगे घुटने टेक चुके हैं ऐसा प्रतीत हो रहा है।

तो यह सोचना स्वाभाविक है कि अनुच्छेद 311 के तहत दी गई संवैधानिक सुरक्षा का क्या औचित्य रह जाता है। अनुच्छेद 311- जोकि सिविल सर्वेंट्स को अनुचित बर्खास्तगी से बचाने के लिए है, जिससे वे बिना किसी दबाव में आए जनहित में अपना कार्य निष्पादित कर सकें- पर यह सवाल खड़ा होता है कि क्या यह सुरक्षा ऐसे अधिकारियों के लिए भी होनी चाहिए जो अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं।’

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