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रजिस्ट्रार के शपथ-पत्र से मचा बवाल, पैरामेडिकल कॉलेजों की संबद्धता पर संकट

जबलपुर 
 मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा से जुड़े कॉलेजों में लगातार गड़बड़ियां सामने आ रही हैं. नर्सिंग कॉलेजों के घोटाले के बाद अब अब पैरामेडिकल कॉलेजों में भी अनियमततिताएं सामने आ रही हैं. नर्सिंग कॉलेजों की ही तरह पैरा मेडिकल कॉलेजों की मान्यता व संबद्धता भी शक के घेरे में है. इसीलिए हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पैरा मेडिकल कॉलेजों के बीते दो सत्रों की मान्यता फिलहाल स्थगित कर दी है.

याचिकाकर्ता ने अलग-अलग शपथ पत्र पर उठाए सवाल

पैरामेडिकल कॉलेजों में मान्यता और संबद्धता के बिना छात्रों को प्रवेश दिये जाने के मामले की सुनवाई हाई कोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन तथा जस्टिस प्रदीप मित्तल की युगलपीठ द्वारा की गई. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से आवेदन पेश करते हुए बताया गया "प्रदेश में बिना संबद्धता वाले कॉलेज में 21 हजार विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया. पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार ने छात्रों के दाखिले के संबंध में अलग-अलग शपथ-पत्र प्रस्तुत किए हैं."

शपथ-पत्र में गलत जानकारी देने पर हाई कोर्ट नाराज

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की युगलपीठ ने विरोधाभासी कथन के साथ शपपथ-पत्र प्रस्तुत करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए फैसला सुरक्षित करने ने आदेश जारी किये हैं. याचिका पर अगली सुनवाई 20 अगस्त को निर्धारित की गई है. गौरतलब है कि लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की ओर जनहित याचिका के तहत आवेदन प्रस्तुत कर आरोप लगाया गया "पैरामेडिकल काउंसिल के रजिस्ट्रार शैलोज जोशी ने हाई कोर्ट में झूठा शपथ पत्र पेश किया है."

रजिस्ट्रार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग

आवेदन में मांग की गई कि उनके खिलाफ न्यायिक आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की जाए. आवेदन में ये भी कहा गया "हाईकोर्ट में 21 जुलाई 2025 को शपथ-पत्र के साथ दायर जवाब में पैरामेडिकल काउंसिल ने दावा किया था कि सत्र 2023-24 के लिए दाखिला प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई. बिना मान्यता एवं संबद्धता किसी संस्थान को प्रवेश की अनुमति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई 2025 को दाखिल एसएलपी में काउंसिल के द्वारा शपथ-पत्र में प्रस्तुत जबाव में कहा गया है कि 21,894 छात्रों ने जनवरी से जुलाई 2025 के बीच प्रवेश लिया. ये स्टूडेंट्स सत्र 2023-24 पढ़ाई कर रहे हैं."

पैरामेडिकल काउंसिल ने भी स्वीकारा

याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी करते अधिवक्ता आलोक वागरेचा ने इसे अदालती कार्रवाई का दुरुपयोग बताया. पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से तर्क दिया गया "सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में दिए गए कोई भी तथ्यों का जिक्र वहीं किया जाना उचित होगा." इसके बाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया "यदि हाई कोर्ट के सामने पेश किए गए शपथपत्र में झूठे तथ्य पेश किए गए हैं तो इसका संज्ञान लिया जा सकता है, जिस पर संबंधित अधिकारी को जवाब देने का अवसर दिया जायेगा."

कॉलेजों को पैरामेडिकल काउंसिल देती है मान्यता

मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल के 166 कॉलेजों में लगभग 01 लाख छात्र पढ़ रहे हैं. पैरामेडिकल कॉलेज को मान्यता के लिए पैरामेडिकल काउंसिल से अनुमति लेनी जरूरी है. काउंसिल यह तय करती है कि पैरामेडिकल कॉलेज में कितना स्टाफ होगा, कितनी बड़ी लैब होगी, कितनी जगह होगी, कितने कमरे होंगे, कौन से कोर्स के लिए किस-किस चीज की जरूरत होगी. पढ़ाई कैसे होगी, कोर्स क्या होगा और परीक्षाएं कैसे होंगी. काउंसिल के सदस्य जब निरीक्षण कर लेते हैं, तब कॉलेज को मान्यता मिलती है.

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