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छत्तीसगढ़ में शिक्षा का स्तर बढ़ा, 4,728 एकल-शिक्षकीय स्कूलों को अतिरिक्त शिक्षकों का लाभ

रायपुर 

छत्तीसगढ़ में शाला शिक्षक युक्तियुक्तकरण नीति लागू की गई है, जोकि सीएम विष्णु देव साय की पहल पर शुरू की गई है। इससे पूरे राज्य में शिक्षकों को बराबर वितरण हो रहा है। अब कोई भी स्कूल बिना टीचर्स के नहीं है। पहले प्रदेश के कुल 453 शिक्षक थे। युक्तियुक्तकरण के बाद एक भी विद्यालय शिक्षक के बिना नहीं है। इसी प्रकार युक्तियुक्तकरण के बाद प्रदेश के 4,728 एकल-शिक्षकीय विद्यालयों में अतिरिक्त शिक्षकों की पदस्थापना की गई है। इस कदम से न केवल कक्षाओं का संचालन नियमित हुआ है, बल्कि बच्चों की उपस्थिति और पढ़ाई के प्रति उत्साह में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

सरगुजा जिला में देखने को मिला साफ असर

इसका असर सरगुजा जिले के मैनपाट विकासखंड स्थित प्राथमिक शाला बगडीहपारा में साफ देखने को मिल सकता है, जहां हाल ही में दो शिक्षकों को तैनात किया गया है। शिक्षक श्री रंजीत खलखो ने बताया कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में उन्हें अपनी पसंद के विद्यालय चुनने का अवसर मिला और उन्होंने दूरस्थ बगडीहपारा को इसलिए चुना क्योंकि वे गांव के बच्चों को शिक्षित करना अपना दायित्व और सौभाग्य मानते हैं। दो शिक्षकों की उपलब्धता से विद्यालय में सभी विषयों की पढ़ाई नियमित रूप से हो रही है, जिससे बच्चों की सीखने की गति तेज हुई है और अभिभावकों का भरोसा भी बढ़ा है। अब वे बच्चों को नियमित रूप से विद्यालय भेज रहे हैं, जिससे उपस्थिति में निरंतर सुधार हो रहा है।

नक्सल प्रभावित इलाके में नहीं था कोई शिक्षक

इसी प्रकार मोहला-मानपुर-अम्बागढ़ चौकी जिले के मानपुर विकासखंड का ग्राम कमकासुर इसका ताजा उदाहरण है। जिला मुख्यालय से 65-70 किलोमीटर दूर स्थित इस नक्सल प्रभावित इलाके में 14 बच्चों की दर्ज संख्या वाली प्राथमिक शाला पिछले एक वर्ष से शिक्षक के बिना चल रही थी। शासन की युक्तियुक्तकरण पहल से यहां प्रधान पाठक की पदस्थापना हुई, जिससे बच्चों की पढ़ाई फिर से शुरू हुई और ग्रामीणों में शिक्षा को लेकर नया उत्साह लौट आया।

युक्तियुक्तकरण से आया बड़ा बदलाव

इसी तरह सक्ती जिले के ग्राम भक्तूडेरा में भी युक्तियुक्तकरण से बड़ा बदलाव आया। वर्षों से एकल शिक्षक पर निर्भर यह प्राथमिक शाला अब दो शिक्षकों से संचालित हो रही है। इससे बच्चों की पढ़ाई व्यवस्थित हुई, उपस्थिति बढ़ी और अभिभावकों का भरोसा मजबूत हुआ। राज्य शासन की यह पहल न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक सुधार कर रही है, बल्कि यह सुनिश्चित कर रही है कि प्रदेश के सबसे सुदूर और पिछड़े क्षेत्रों के बच्चे भी उज्ज्वल और आत्मनिर्भर भविष्य की ओर अग्रसर हों।

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