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बाहा पर्व : सीएम हेमंत ने पूजा-अर्चना करने के बाद बजाया ढोल

नेमरा

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीते शनिवार को अपने पैतृक गांव नेमरा में परिवार के साथ बाहा पर्व मनाया। इस मौके पर सीएम हेमंत सोरेन ने सरना पूजा स्थल ‘जाहेरथान’ में पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर राज्यवासियों की सुख-समृद्धि, उन्नति और कल्याण की कामना की।

हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन और भाभी सीता सोरेन सहित परिवार के अन्य सदस्य भी इस पूजा में शामिल हुए। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हेलीकॉप्टर से अपने गांव पहुंचे और हेलीपैड से सीधे अपने घर गए। वहां उन्होंने पारंपरिक वस्त्र धारण किए और ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच पैदल करीब एक किलोमीटर चलकर सरना स्थल पहुंचे।

मुख्यमंत्री ने पूजा-अर्चना करने के बाद ढोल भी बजाया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पैतृक आवास में पत्नी कल्पना सोरेन के साथ पूजा-अर्चना के बाद घर के किचन में परिवार के सदस्यों के साथ भोजन भी बनाया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने पत्ता में लपेट कर चावल का छिलका भी बनाया। बाद में परिवार के सभी सदस्यों के साथ इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया और स्वाद का आनंद लिया।

मुख्यमंत्री के दौरे को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। डीसी चंदन कुमार, एसपी अजय कुमार, एसडीओ सहित जिले के वरिष्ठ अधिकारी उनके पैतृक आवास पर मौजूद रहे। पूरे नेमरा गांव और उनके गुजरने वाले मार्गों पर सुरक्षा बल तैनात किए गए थे। बाहा पर्व के मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी को शुभकामनाएं दीं।

बाहा परब या बाहा बोंगा भारत के संताल जनजाति का एक पर्व है। 'बाहा' का अर्थ है फूल। इस पर्व के अवसर पर बच्चे, पुरुष और स्त्रियां सभी परम्परागत वस्त्र धारण करते है तथा मदाल बजाया जाता है। फाल्गुन माह आरम्भ होने से पहले बाहा पर्व मनाया जाता है। ग्राम के लोग बैठक कर सारे कार्यक्रम का निर्धारण करते हैं। उसके बाद जाहेरथान में अपने देवताओं (पूर्वजों) की पूजा-अर्चना की जाती है जिसमें खासकर साल और महुआ के फूलों को चढ़ाया जाता है। गांव के लोग भोग ग्रहण करके जब गांव वापस लौटते हैं तब उनके पैर धोकर उनका स्वागत किया जाता है। उसके बाद उत्सव मनाया जाता है। एक-दूसरे पर पानी डालकर खेलते है और संध्या के समय नाच-गाना करके परब मनाया जाता है। इस पर्व में संताल समाज के लोग होली खेलने के साथ ही साल वृक्ष के फूलों की पूजा करते है। संताली आदिवासी समाज की ओर से बाहा पर्व के नाम से होली मनाने की परंपरा है जिसमें रंग के बदले सादा पानी से होली खेलते हैं। बाहा पर्व आदिवासियों का बड़ा पर्व है। इसे फागुन माह के 5वें दिन से शुरू होकर पूर्णिमा तक मनाए जाने की परंपरा है।

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