56 भोग की परंपरा: जन्माष्टमी पर कृष्ण को चढ़ाने का रहस्य, जानें कैसे शुरू हुई परंपरा

 हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में माना जाता है. इस अवसर पर मंदिरों और घरों में विशेष सजावट, भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना का आयोजन होता है. जन्माष्टमी की पूजा का सबसे खास हिस्सा छप्पन भोग है. यह न केवल प्रसाद है, बल्कि प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है. आइए जानते हैं, छप्पन भोग की महत्ता और इसके पीछे की पौराणिक कथा.

क्या है छप्पन भोग?

‘छप्पन भोग’ का अर्थ है 56 प्रकार के सात्विक व्यंजन है. इसमें कई प्रकार के मिष्ठान, तरह-तरह की नमकीन, फल, अनाज और दूध से बनी खास चीजें शामिल होती हैं. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को ये छप्पन भोग बेहद प्रिय हैं.

क्यों चढ़ाया जाता है छप्पन भोग?

पौराणिक मान्यता के अनुसार, ब्रजवासी हर वर्ष देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए एक आयोजन करते थे. ताकि साल भर अच्छी बारिश हो. एक बार बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण ने नंद बाबा से इसका कारण पूछा. नंद बाबा ने बताया कि यह पूजा इंद्रदेव के लिए की जाती है. तब श्रीकृष्ण ने प्रश्न किया "बारिश के लिए केवल इंद्र की ही पूजा क्यों होती है? हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा भी करनी चाहिए, जो हमें अन्न, फल, सब्जियां और पशुओं के लिए चारा प्रदान करता है."

श्रीकृष्ण से ऐसा सुनकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और ब्रज में भीषण वर्षा शुरू कर दी, जिससे बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई थी. ऐसे में लोगों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी को उसके नीचे शरण दी. कहते हैं कि सात दिन तक पर्वत को उठाए रखने के कारण श्रीकृष्ण ने कुछ भी नहीं खाया था.

बारिश रुकने के बाद, ब्रजवासियों ने भगवान के आभार स्वरूप सात दिन के उपवास की भरपाई के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनाकर अर्पित किए. तभी से यह परंपरा बन गई कि जन्माष्टमी के कृष्ण को 56 भोग चढ़ाया जाता है.

छप्पन भोग में क्या-क्या होता है?

छप्पन भोग में माखन, मिश्री, पेड़ा, लड्डू, रबड़ी, पूरी, कचौरी, हलवा, खिचड़ी, मौसमी फल, दही-पकवान, ठंडे पेय और अनेक प्रकार की मिठाइयां, नमकीन और फल शामिल होते हैं. ये सभी व्यंजन सात्विक और भगवान को प्रिय माने जाते हैं.

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