सहायक अध्यापक भर्ती में 25% आरक्षण विवाद, हाईकोर्ट ने सरकार को किया तलब

इंदौर
 मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर पूछा है कि सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा में किस आधार पर सहायक अध्यापकों को 25 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। कोर्ट ने शासन को यह नोटिस भर्ती प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए जारी किया है।

सहायक प्राध्यापक के रिक्त पदों के लिए राज्य शासन ने 31 दिसंबर 2024 को भर्ती निकाली थी। इस संबंध में मप्र लोकसेवा आयोग ने परीक्षा आयोजित की थी। इसमें सहायक अध्यापकों को 25 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिया गया। इस संबंध में शासन ने 24 दिसंबर 2024 को आदेश जारी किया था। इस आदेश को याचिकाकर्ता सोनू जाटव ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।

याचिका में कहा है कि आरक्षण पिछड़े एवं कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई एक संवैधानिक नीति है। सहायक अध्यापक न तो समाज के पिछड़े वर्ग से आते हैं, न ही वे कमजोर वर्ग में शामिल हैं, इसलिए उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है। याचिका पर सुनवाई हुई।

17 जून को नए प्रमोशन के नियम को दी थी मंजूरी
मोहन यादव कैबिनेट ने 17 जून को नए प्रमोशन नियमों को मंजूरी दी थी। इसके बाद सरकार ने 19 जून 2025 को नए नियम बनाकर उन्हें लागू कर दिया। लेकिन सरकार ने न तो सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका वापस ली और न ही पुराने नियम से प्रमोट हुए कर्मचारियों को पदावनत किया। इसका मतलब है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी, उसे वापस नहीं लिया। साथ ही, पुराने नियमों के तहत जिन कर्मचारियों का प्रमोशन हुआ था, उन्हें उनके पद से नहीं हटाया गया।

इसी वजह से जब इन नियमों के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, तो कोर्ट ने सरकार से नए और पुराने नियमों के बीच का अंतर स्पष्ट करने को कहा। कोर्ट ने यह भी पूछा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस क्यों नहीं ली। जब ये नियम बन रहे थे, तब भी यह मुद्दा उठा था। लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब इस मामले में सरकार जो जवाब देगी, उससे ही यह तय होगा कि प्रमोशन का रास्ता खुलेगा या प्रमोशन पर रोक लगी रहेगी।

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