चंडीगढ़
शिरोमणि अकाली दल के वयोवृद्ध नेता सुखदेव सिंह ढींडसा नहीं रहे। वह 90 साल के थे। उन्हें कल ही मोहाली के निजी अस्पताल में ले जाया गया था जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे। प्रकाश सिंह बादल के साथ लंबे समय तक राजनीतिक जीवन गुजारने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा को बादल के बाद पार्टी का सरपरस्त बनाया गया था लेकिन उनकी पार्टी प्रधान सुखबीर बादल के साथ कभी नहीं बनी और वह उनसे अलग हो गए।
ढींडसा 1972 को पहली बार तब के संगरूर जिले की धनौला सीट से पहली बार विधानसभा का चुनाव जीते थे । उसके बाद 1977 को सुनाम, 1980 को संगरूर और 1985 को फिर से सुनाम सीट से विधानसभा का चुनाव जीते। वह वाजपेयी सरकार के दौरान रासायन व खेल मंत्री भी रहे ।
वह राज्य सभा और लोकसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।1997 के बाद उन्होंने प्रदेश की राजनीति से अपने आपको दूर कर लिया और केंद्रीय राजनीति में चले गए। अपनी राजनीतिक विरासत उन्होंने अपने बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा को सौंप दी जो लगातार सुनाम से जीतते रहे लेकिन पिछले चुनाव के दौरान उन्होंने लहरागागा से चुनाव लड़ा।
सुखबीर के कारण प्रकाश सिंह बादल से बिगड़े रिश्ते
बताते हैं कि सुखदेव सिंह ढींडसा का प्रकाश सिंह बादल से बहुत प्रेम था लेकिन बरगाड़ी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण वह सुखबीर बादल से काफी नाराज हो गए थे। 2017 का चुनाव हारने के बाद उन्होंने पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफा दे दिया।
हालांकि प्रकाश सिंह बादल ने उन्हें मनाने का काफी प्रयास किया था लेकिन उन्होंने कहा कि अब सुखबीर के साथ और देर नहीं चल पाएंगे। ढींडसा के इस्तीफे की वजह शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की कार्यशैली रही।
सुखदेव सिंह ढींडसा पार्टी लीडरशिप से इसलिए भी नाराज थे क्योंकि वह लगातार श्री अकाल तख्त साहिब के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबच सिंह को न हटाया नहीं जा रहा था जबकि सिख जगत में उनका काफी विरोध हो रहा था।
2015 में जब डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम को माफ किया गया उसको लेकर सिख समुदाय में बहुत रोष था। अकाली दल की इस मामले को लेकर खूब किरकिरी हो रही थी। शिअद से अलग होकर उन्होंने शिरोमणि अकाली दल संयुक्त बनाया लेकिन वह भी ज्यादा चल नहीं सका। वह एक बार फिर से सुखबीर सिंह बादल के साथ आ गए लेकिन यहां भी ज्यादा टिक नहीं पाए।
दो दिसंबर को लगी थी धार्मिक सजा
दो दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब से हुए फैसले में सुखदेव सिंह ढींडसा को भी अकाली दल की सरकारों के दौरान हुए फैसलों के लिए बराबर का दोषी मानते हुए उन्हें धार्मिक सजा लगाई गई। चूंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए उन्हें कुछ सजाओं से राहत दी गई।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी देने और बाद में इसे वापिस लेने को लेकर जो विज्ञापन जारी हुए उसमें अपने हिस्से की राशि का भुगतान सुखदेव सिंह ढींडसा ने किया। सजा पूरी करने के दौरान ही उन्होंने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी।
भाजपा के साथ भी बनी नजदीकी
शिरोमणि अकाली दल से अलग होने के बाद सुखदेव सिंह ढींडसा की भारतीय जनता पार्टी के साथ नजदीकी काफी बढ़ गई थी। शिरोमणि अकाली दल गठबंधन टूटने के बाद भाजपा को भी एक अदद माडरेट अकाली दल की तलाश थी जो उन्होंने सुखदेव सिंह ढींडसा के रूप में देखी लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया।